Sunday, May 17, 2015

promotion & bounties from Cows and Vedic knowledge Atharva Veda 12.5


Brahm Gavi AV 12.5
ऋषि:- कश्यप: = जो ज्ञान युक्त निपुण होने से बाह्य और आंतरिक शत्रुओं से अपनी रक्षा करने में समर्थ  हो ऐसा  ऋषि
देवता:  ब्रह्मगवी:= परमेश्वर द्वारा प्रदान की हुइ गौ एवं  वेद वाणी से प्राप्त  ज्ञान
1.   श्रमेण तपसा सृष्टा ब्रह्मणा वित्ता र्ते श्रिता  । । AV12.5.1
गौ एवं  वेद वाणी से  परिश्रम और तप द्वारा  सृष्टि के नियमों का   ज्ञान होता है  | इन  सृष्टि के नियमों के  पालन पर ब्रह्माण्ड के  समस्त धन और  साधन आधारित हैं |
2.    सत्येनावृता श्रिया प्रावृता यशसा परीवृता  । । AV12.5.2
सत्य पर आधारित गोपालन और वेदों का ज्ञान समाज को (श्री) आश्रय और  प्रदान करता है.
3.   स्वधया परिहिता श्रद्धया पर्यूढा दीक्षया गुप्ता यज्ञे प्रतिष्ठिता लोको निधनं । । AV12.5.4
गो सेवा और वेदों के ज्ञान  के संकल्प से सब जन श्रद्धा को ओढ़े होते हैं | गोपालन  और वेद अध्ययन यज्ञादि सेवा से सम्मान पाने वाले इस दीक्षा से  गौ और वेदों को अपनी धारणा शक्ति से सुरक्षित रखते  है. गौ और वेद इस लोक की स्थिरता का आधार  हैं ( श्रद्धा और समर्पित भावना  से गो सेवा करने और वेद पढ़ने से  लोक और  गौ के समीप यज्ञ करने से गौ और लोक अपनी प्रकृति से स्वयं  स्वस्थ रहते  है.)
4. ब्रह्म पदवायं ब्राह्मणोऽधिपतिः । । AV12.5.4
गोसेवा और वेदों का अनुसरण करने वाले श्रेष्ठ स्थान को  पाते हैं | ( गोसेवा और वेद ज्ञान ने ही भारत वर्ष को जगत गुरु के स्थान पर पहुंचाया था )
Warning to King ho does not protect cows
5.  तामाददानस्य ब्रह्मगवीं जिनतो ब्राह्मणं क्षत्रियस्य । । AV12.5.5
6.  अप क्रामति सूनृता वीर्यं पुन्या लक्ष्मीः । । AV12.5.6
जिस समाज के बुद्धि जीवी और रक्षा करने वाले ( नीति तथा योजना बनाने वाले और शासक वर्ग) गौओं और वेदों के ज्ञान को (जिनत: - सताते हैं )  अवहेलना करते हैं  , उन से (सूनृता- उषा काल –विकास ) (वीर्यं – पौरुष वीरता ) (पुण्या लक्ष्मी – पुण्य प्राप्त कराने वाली लक्ष्मी ) (अप क्रामति) छिन जाती हैं |
Society in which Government, opinion forming and policy framing  intellectuals ignore Vedic wisdom and do not provide protection to cows  they suffer from lack of development , loss of strength and wealth earned by fair just means  that promotes public welfare.
7.  ओजश्च तेजश्च सहश्च बलं च वाक्चेन्द्रियं च श्रीश्च धर्मश्च । । AV12.5.7
पराक्रम और तेज, शत्रुओं को पराजित कर पाने की शक्ति, वाणी द्वारा विपक्ष को संतुष्ट करने की क्षमता , शरीर की इंद्रियों का  बल- स्वास्थ्य , संसार में यश और मानव धर्म का  पालन छिन जाते हैं  ,
8. ब्रह्म च क्षत्रं च राष्ट्रं च विशश्च त्विषिश्च यशश्च वर्चश्च द्रविणं च  । ।८ । ।
(ब्रह्म च क्षत्रं च ) ज्ञान और बल, ( राष्ट्रं च विशश्च) राज्य शासन  और प्रजा,(त्विषिश्च यशश्च) दीप्ति देश का गौरव और यश, (वर्चश्च द्रविणं च) रोग निरोधक शक्ति  और कार्य साधक धन छिन  जाते हैं |  
9.  आयुश्च रूपं च नाम च कीर्तिश्च प्राणश्चापानश्च चक्षुश्च श्रोत्रं च । । AV12.5.9 (आयुश्च रूपं च)  दीर्घायु और सौंदर्य ( नाम च कीर्तिश्च) ख्याति और यश , (प्राणश्चापानश्च) प्राण अपान- श्वास द्वारा बल प्राप्त करने  और शारीरिक दोषों को दूर करने की क्षमता  ( चक्षुश्च श्रोत्रं च) दृष्टि शक्ति और श्रवण करने की शक्ति  का ह्रास हो जाता है |
10.  पयश्च रसश्चान्नं चान्नाद्यं च र्तं च सत्यं चेष्टं च पूर्तं च प्रजा च पशवश्च । । AV12.5.10
(पयश्च रसश्चान्नं चान्नाद्यं च र्तं) गोदुग्ध और खाद्यान्नों में ओषधि रस तथा अन्न खा कर पचाने  की क्षमता , (च सत्यं चेष्टं च पूर्तं च) भौतिक क्रियाओं का ठीक समय और ठीक स्थान व्यवहार में सत्यता से आवश्यकताओं की पूर्ति का होना नहीं होता , (प्रजा च पशवश्च ) जब प्रजा और पशुओं गौ इत्यादि की  अवहेलना होती  है |
11.  तानि सर्वाण्यप क्रामन्ति ब्रह्मगवीं आददानस्य जिनतो ब्राह्मणं क्षत्रियस्य । । AV12.5.11
इस प्रकार गोसेवा और वेद ज्ञान के ह्रास से समाज के यश, बल, सामर्थ सब छिन जाते हैं |
12.  सैषा भीमा साक्षात्कृत्या कूल्बजं आवृता । । AV12.5.12
( सा एषा  ब्रह्मगव्य  आवृता sघविषा) वह गोसेवा और वेद ज्ञान का  ह्रास राष्ट्र में पाप के विष को  फैलाने वाली  (साक्षात्कृत्या भीमा कूल्बजं) दो किनारों में बहने वाली नदी में आइ  बाढ़ के समान  साक्षात  भूमि में भयंकर सब कुछ काट देने वाली आपदा है| 
13.  सर्वाण्यस्यां घोराणि सर्वे च मृत्यवः । । AV12.5.13
(सर्वाण्यस्यां घोराणि) इस  गोसेवा और वेद ज्ञान के  ह्रास पर राष्ट्र में सब प्रकार के पाप, कष्टदायी  आक्रमण सब का हनन करने वाले (सर्वे च मृत्यवः) सब प्रकार से मृत्यु और रोग फैलते हैं |
14.  सर्वाण्यस्यां क्रूराणि सर्वे पुरुषवधाः । । AV12.5.14
(अस्यां) इस  गोसेवा और वेद ज्ञान के  ह्रास पर राष्ट्र में (सर्वाणि क्रूराणि) सब जन क्रूर हो जाते  हैं  (सर्वे पुरुषवधाः) और सब पुरुषों के वध प्रारम्भ हो जाते हैं  कत्ल होने लग जाते  हैं  |
15.  सा ब्रह्मज्यं देवपीयुं ब्रह्मगव्यादीयमाना मृत्योः पद्वीष आ द्यति । । AV12.5.15
गो हत्या और  ब्रह्म हत्या- गौओं और ब्राह्मणों को हानि पहुंचाने वाला  राजा  मृत्यु की बेड़ियों में बंध जाता है| ( ऐसे समाज और राष्ट्र का विनाश निश्चित  है )
16.  मेनिः शतवधा हि सा ब्रह्मज्यस्य क्षितिर्हि सा । । AV12.5.16
17.  तस्माद्वै ब्राह्मणानां गौर्दुराधर्षा विजानता । । AV12.5.17
 गौ हत्या  सेंकड़ों प्रकार से बुद्धि को क्षति पहुंचाता है, जिस के परिणाम स्वरूप ज्ञानी लोग भी  गोहत्या के विरुद्ध निष्क्रिय हो जाते  हैं |
18.  वज्रो धावन्ती वैश्वानर उद्वीता । । AV12.5.18
19.  हेतिः शफानुत्खिदन्ती महादेवोऽपेक्षमाणा । । AV12.5.19
भय के कारण भागती हुइ गौ वज्र के समान हिंसक होती है, निष्कासित ‌ घर से निकाल दी गौ (वैश्वानर –अग्नि: ) विश्व के मनुष्यों का नाश करने वाली अग्नि होती है |
20.  क्षुरपविरीक्षमाणा वाश्यमानाभि स्फूर्जति । । AV12.5.20
गौ अपने को असुरक्षित स्थिति में समझने पर खुरों को भूमि पर रगड- कर पैना करने लगती है और सुरक्षा की सहायता के लिए चारों ओर गूंजने वाला शब्द करती है |

21.  मृत्युर्हिङ्कृण्वत्युग्रो देवः पुछं पर्यस्यन्ती । । AV12.5.21
घातक द्वारा चोट खाई गौ निर्बलावस्था में हिं  ऐसा धीमा शब्द करती है, अपनी पूंछ इधर उधर फैंकती है, अपने कान फड़फड़ाती है,  गोरक्षक देवता स्वरूप जनों को उग्र बनाती है |
Sick Cows & Quarantine
22.  सर्वज्यानिः कर्णौ वरीवर्जयन्ती राजयक्ष्मो मेहन्ती । । AV12.5.22
बार बार कान फड़ फड़ाने वाली और  बार बार मूत्र करने वाली गौ को यक्ष्मा रोग के लक्षण होते हैं |
23.  मेनिर्दुह्यमाना शीर्षक्तिर्दुग्धा । । AV12.5.23
ऐसी यक्ष्मा रोग से पीड़ित गौ का दूध नहीं दोहना चाहिए |  
24.  सेदिरुपतिष्ठन्ती मिथोयोधः परामृष्टा । । AV12.5.24
ऐसी रुग्ण गौ को अन्य गौओं के समीप रखने से छूत का यह रोग फैल जाता  है | 

25.  शरव्या मुखेऽपिनह्यमान ऋतिर्हन्यमाना  । । AV12.5.25
ऐसी रुग्ण गौ के कष्ट के कारण शब्द को रोकने के  लिए उस का मुन्ह नहीं बांधना चाहिए | इस से गौ को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है |
Punishment  for Cow slaughter
(गोहत्या , मानव हत्या मृत्यु दण्ड  
 (4)  यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पूरुषं ।
 तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा । ।AV1.16.4 
(यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पूरुषं) यदि गोहत्या , अश्व हत्या , पुरुष हत्या करने वाला है  ।और (नोऽसो अवीरहा) हमारे अवीर छोटे बालकों - का हनन करने वाला है   (तं त्वा सीसेन विध्यामो) तब मैं तुझे गोली से  उड़ा दूंगा
 Those committing murder, killing of cows, horses & innocent helpless children, they should be shot to death (shown no mercy)

26. अघविषा निपतन्ती तमो निपतिता । । AV12.5.26
गो रक्षक लोग गौ के हत्यारे को विष दे कर मार डालें | जब तक हत्यारे के  अरोप सिद्ध नहीं हो जाता और विष का प्रबंध नहीं होता, उस गौ हत्यारे को एक अंधेरी कोठरी में बंद रखना चाहिए | ( आचार्य विश्वनाथ विद्यालंकार के अथर्व वेद भाष्य पर आधारित )
27. अनुगछन्ती प्राणानुप दासयति ब्रह्मगवी ब्रह्मज्यस्य । । AV12.5.27
ब्रह्मगवी - गो और वेदों  की वाणी- विद्वान जनों के प्रसार पचार करने वालों शत्रु  के घातकों  को तो दण्ड दे कर मार दिया गया , गौ भी मर गई | परंतु मृत ब्रह्मगवी हत्या करने वाले का पीछा करती है  और पुनर्जन्म लेने पर उस गो हत्या करने वाले के प्राणों को नष्ट कर देती है  | समाज के भविष्य को भी नष्ट कर डालती है |
28. वैरं विकृत्यमाना पौत्राद्यं विभाज्यमाना । । AV12.5.28
गौओं के काटने और उन के मांस को बांटने पर, घातक के कुलों में और गोरक्षा करनेवालों मे वैर उत्पन्न हो जाता है  (समाज में वैर उत्पन्न हो जाता है ) . इस वैर  का दुष्परिणाम गोहत्या करने वालों के  पौत्रों तक को भोगना पड़ता है | यह वैर कहां तक जाता है, यह गोरक्षकों की गौ के प्रति श्रद्धा पर निर्भर है |
29.  देवहेतिर्ह्रियमाणा व्यृद्धिर्हृता । । AV12.5.29
(गो) मांस के व्यापार का राष्ट्र के विद्वानों और दिव्य कोटि के लोगों को पता चलने पर समाज में हिंसा का वातावरण बनता है | गौओं के दूध की कमी और कृषि कर्म की कठिनाइयों के कारण राष्ट्र की ऋद्धि समृद्धि क्षीण हो जाती है |
30.  पाप्माधिधीयमाना पारुष्यं अवधीयमाना । । AV12.5.30
(गो) मांस का  व्यापार समाजिक अशांति की  पापवृत्ति को प्रकट करता है और गोमांस का प्रयोग हृदय की कठोरता को प्रकट करता है |
31.  विषं प्रयस्यन्ती तक्मा प्रयस्ता । । AV12.5.31
(गो)  मांस पकाने के  प्रयास  विष रूप है और इन का प्रयोग  कष्ट प्रद रोगादि ज्वर रूप है | ( बौद्ध ग्रंथ “सूतनिपात” के अनुसार माता पिता , भाई तथा अन्य सम्बंधियों के समान गौएं हमारी श्रेष्ठ सखा हैं  | पूर्वकाल में केवल तीन ही रोग थे  – इच्छा, भूख और क्रमिक ह्रास | परंतु पशुघात मांसाहर के कारण 98 रोग पैदा हो गए | )
32. अघं प्रच्यमाना दुष्वप्न्यं पक्वा । । AV12.5.32
(गौ) मांसको पकाना पाप है | गोमांस का पका कर प्रयोग जीवन को दु:स्वनों जैसा दुखदायी बना देता है |
33.  मूलबर्हणी पर्याक्रियमाणा क्षितिः पर्याकृता । । AV12.5.33
(गो)मांस का प्रयोग यक्षमा जैसे अनुवांशिक रोगों से भावी संतानों की जड़ काट देता है |
34.  असंज्ञा गन्धेन शुगुद्ध्रियमाणाशीविष उद्धृता । । AV12.5.34
(गो) मांस सेवन करने वालों में अज्ञता – मूढ़मति-  मोटी अकल होती  हैं | पकते मांस की गंध का परिणाम शोक - निराशा - उत्पन्न करके विष समान है |
35.  अभूतिरुपह्रियमाणा पराभूतिरुपहृता । । AV12.5.35
(गो) मांसाहार के प्रोत्साहन से शारीरिक तेज नष्ट हो जाता है | और समाज में रोग बढ़ते हैं |
36.  शर्वः क्रुद्धः पिश्यमाना शिमिदा पिशिता । । AV12.5.36
(गो) मांस के सेवन से क्रोध  वृत्ति और हिंसक भावना  बढ़ते हैं |
37.  अवर्तिरश्यमाना निरृतिरशिता । । AV12.5.37
(गो) मांस सेवन से (अवित:) दरिद्रता पैदा होती है जिस से कष्ट बढ़ते है |      
38.  अशिता लोकाच्छिनत्ति ब्रह्मगवी ब्रह्मज्यं अस्माच्चामुष्माच्च । । AV12.5.38
गो जाति का स्वामी परमेश्वर है |  (ब्रह्मज्यम्‌) गो की रक्षा करने वाले को  हानि  पहुंचाने वाले का स्वयं सर्वनाश हो जाता है |  
39.  तस्या आहननं कृत्या मेनिराशसनं वलग ऊबध्यं । । AV12.5.39
गौ  हत्या से  दुष्परिणाम के  अनेक अदृष्य कारण होते हैं  जिन्हें एक कृत्या के  सन्हारक रूप से देखा जाता है |
40.  अस्वगता परिह्णुता । । AV12.5.40
चुराई गौ से लाभ नहीं होता
41.  अग्निः क्रव्याद्भूत्वा ब्रह्मगवी ब्रह्मज्यं प्रविश्यात्ति  । ।४१ । ।
गोरक्षकों और वेदज्ञों के जीवन को  हानि पहुंचाने वालों में श्मशान की शवाग्नि   घुस कर उन को खा जाती है |  
42.  सर्वास्याङ्गा पर्वा मूलानि वृश्चति । । AV12.5.42
गौ और वेद ज्ञान का ह्रास समाज की जड़ों को नष्ट कर देता है |
43.  छिनत्त्यस्य पितृबन्धु परा भावयति मातृबन्धु । । AV12.5.43
माता पिता और बन्धु जनों से पारिवारिक सम्बंध भावनाओं से रहित हो जाते हैं  |
44.  विवाहां ज्ञातीन्त्सर्वानपि क्षापयति ब्रह्मगवी ब्रह्मज्यस्य क्षत्रियेणापुनर्दीयमाना  । । AV12.5.44
विवाह का महत्व क्षीण हो जाता है परिणाम, स्वरूप संतान का आचरण ठीक न होने पर भविष्य में  उत्तम समाज का निर्माण नहीं हो पाता |  
45.  अवास्तुं एनं अस्वगं अप्रजसं करोत्यपरापरणो भवति क्षीयते । । AV12.5.45
समाज में व्यक्तिगत घर और सम्पत्ति के साधन नष्ट होने लगते हैं  | पालन पोषण  के साधन क्षीण हो जाते हैं |  अनाथ बच्चे और बिना घर बार के लोग दिखाई देते  हैं |
46.  य एवं विदुषो ब्राह्मणस्य क्षत्रियो गां आदत्ते । । AV12.5.46
जब विद्वान,  गौ और वेद  ज्ञान समाज से छिन जाता है  |
47.  क्षिप्रं वै तस्याहनने गृध्राः कुर्वत ऐलबं । । AV12.5.47
तब (देश की रक्षा करते हुए मारे जाने वाले) क्षत्रियों का दाह संस्कारकरने वाला भी कोइ नहीं रहता , उन के शरीर को खानेके लिए गीध Vultures ही इकट्ठे होते हैं |
48.  क्षिप्रं वै तस्यादहनं परि नृत्यन्ति केशिनीराघ्नानाः पाणिनोरसि कुर्वाणाः पापं ऐलबं  । । AV12.5.48
यह निश्चित है , कि शीघ्र  ही उन (वीर देश पर बलिदान होने वालों ) के निधन पर आह स्थान क  आस पास खुले केशों वाली हाथ से छाती पीटती हुई स्त्रियां  विलाप करती हुई होती हैं |
49.  क्षिप्रं वै तस्य वास्तुषु वृकाः कुर्वत ऐलबं । । AV12.5.49
शीघ्र ही उन क्षत्रिय राजाओं के देश में एक दूसरे से लड़ने और चिल्लाने वाले भेड़ियों से भरा समाज बन जाता है | निश्चय ही उन राजाओं के महलों में जंगली जानवर  निवास  करने लग जाते  हैं |
50.  क्षिप्रं वै तस्य पृछन्ति यत्तदासी३दिदं नु ता३दिति । । AV12.5.50
 शीघ्र ही उस प्रदेश में प्रजा केवल अपने अतीत के क्षत्रिय राजाओं का इतिहास याद करने लगती है |
51.  छिन्ध्या छिन्धि प्र छिन्ध्यपि क्षापय क्षापय । । AV12.5.51
जिसे ध्यान कर के सब ओर मार काट मार काट होने लगती है |
52. आददानं आङ्गिरसि ब्रह्मज्यं उप दासय । । AV12.5.52
(इस लिए) अंत में ब्रह्मगवी , गोमाता,  गोरक्षा  और वैदिक  ज्ञान का क्षय करने वाले तत्वों पर ब्रह्मज्ञानी विजय पाते हैं   | ( गौ और वेदों की रक्षा करने वाले आर्य विश्व विजयी होते हैं )
53. वैश्वदेवी ह्युच्यसे कृत्या कूल्बजं आवृता । । AV12.5.53
( हे  गोमाता) तुम  वैश्वदेवी सब विद्वानों का हित करने वाली  कही जाती हो | तुम्हारे आशीर्वाद से मिलने वाले प्रसाद की उपेक्षा करना अथवा  न ग्रहण करना इतना ही हानि कारक है जितना  अपने किनारों को तोड़ कर विध्वंसकारी नदी में आई  बाढ़ का |  
54.  ओषन्ती समोषन्ती ब्रह्मणो वज्रः । । AV12.5.54
जो सब को समान रूप से जला कर भस्म  कर देने वाले दैवीय वज्र के समान  है |
55.  क्षुरपविर्मृत्युर्भूत्वा वि धाव त्वं । । AV12.5.55
गो और वेद ज्ञान के रक्षकों  तुम विविध रूप से सक्षम हो  कर शीघ्रता से अपना दायित्व निभाओ |
56.  आ दत्से जिनतां वर्च इष्टं पूर्तं चाशिषः । । AV12.5.56
गौ जाति को हानि पहुंचाने वाले समाज से उन का वर्चस्व , सब योजनाओं के सिद्ध होने के सफल होने और इच्छाओं की पूर्ति और आशीर्वाद छिन जाते  हैं  |
57.  आदाय जीतं जीताय लोकेऽमुष्मिन्प्र यच्छसि । । AV12.5.57
गौ और वैदिक संस्कृति को हानि पहुंचाने वाले तत्वों  को भविष्य में विजयी गो और वेद पालकों के अधीन हो जाना पड़ता है | (कृण्वंतोविश्वमार्यम)
58.  अघ्न्ये पदवीर्भव ब्राह्मणस्याभिशस्त्या । । AV12.5.58
गौ और वेदों का प्रकाश करने वाले ब्रह्मचारियों की प्रतिष्ठा हो |
59.  मेनिः शरव्या भवाघादघविषा भव । । AV12.5.59
वेद निंदक शत्रुओं के पाप के पापाचार के विरुद्ध  (ब्रह्मगवी) गौ और वेद  ज्ञान से महान घातक विषैला  एवं वज्र समान सैन्य बल  हो | 
60.  अघ्न्ये प्र शिरो जहि ब्रह्मज्यस्य कृतागसो देवपीयोरराधसः । । AV12.5.60
गौ और वेद ज्ञान के प्रति हिंसा करनेवालों को यथावत दण्ड मिले |
61.  त्वया प्रमूर्णं मृदितं अग्निर्दहतु दुश्चितं । । AV12.5.61
गौ और वेद  विरोधी दुराचारियों को न्याय और शासन व्यवस्था जला कर भस्म कर दे |
62.  वृश्च प्र वृश्च सं वृश्च दह प्र दह सं दह । । AV12.5.62
शाब्दिक अर्थ – गौ और वेदों के प्रति हिंसा करने वालों को (वृष्च प्र विश्च ) काट डाल चीर डाल , (सं वृश्च) फाड़ डाल (दह सं दह ) फूंक दे भस्म कर दे |
भावार्थ – धर्मात्मा लोग अधर्मियों का नाश करने में सर्वदा उद्यत रहें |
63.  ब्रह्मज्यं देव्यघ्न्य आ मूलादनुसंदह । । AV12.5.63
64.  यथायाद्यमसादनात्पापलोकान्परावतः । । AV12.5.64
राजा को उचित है कि वेद  व्यवस्था के अनुसार अधर्मी गौ और वेद और ज्ञान के घातक दोषियों को बहुत दूर कारावास  (कालापानी) में रखें  |
65.  एवा त्वं देव्यघ्न्ये ब्रह्मज्यस्य कृतागसो देवपीयोरराधसः । । AV12.5.65
66.  वज्रेण शतपर्वणा तीक्ष्णेन क्षुरभृष्टिना । । AV12.5.66
67.  प्र स्कन्धान्प्र शिरो जहि । । AV12.5.67
गौ और वेद ज्ञान  के  अनुयायी जनों –ब्राह्मणों की हिंसा करने वाले पापियों देवताओं की अराधना न करने और हिंसा करने  वाले  जनों को शासन को प्रचण्ड दण्ड देवे |
68. लोमान्यस्य सं छिन्धि त्वचं अस्य वि वेष्टय । । AV12.5.68
69.  मांसान्यस्य शातय स्नावान्यस्य सं वृह । । AV12.5.69
70.  अस्थीन्यस्य पीडय मज्जानं अस्य निर्जहि । । AV12.5.70
71.  सर्वास्याङ्गा पर्वाणि वि श्रथय । । AV12.5.71
नीति निपुण धर्मज्ञ राजा वेद मार्ग पर चल कर वेद विमुख अत्याचारी लोगों को विविध प्रकार के प्रचण्ड दण्ड देवे |

मांसाहार का पर्यावरण पर घातक प्रभाव
Meat Eating causes Global warming and desertification
72.  अग्निरेनं क्रव्यात्पृथिव्या नुदतां उदोषतु वायुरन्तरिक्षान्महतो वरिम्णः  । ।
 AV12.5.72
मांसाहार पृथ्वी को जला डालता है | पर्यावरण में वायुमन्डल और  वर्षा का जल भयंकर रूप धारण कर लेते हैं |
73.  सूर्य एनं दिवः प्र णुदतां न्योषतु  । ।AV12.5.73
सूर्य का ताप मान प्रचंड हो जाता है जो निश्चय ही पृथ्वी को  जला देता है |




1 comment:

Unknown said...

Sir your work is applaudable in this field and should be recognised by Government of India.
Sir I want to brought one thing in your knowledge that Maharshi dayanand gausamvardhan Kendra, gazipur, delhi, established under your guidance is also adopting practice of adding some powder milk type content daily in their morning distribution of cow milk which is around 37 ltr (generally in piece meals). The mixture is which they use to mix is taken out from cold storage. Sir i share my personal experience with you on this:-
Sir my father use to take milk from Gazipur kendra since last 8 years or so. After his demise in Sep 2014, i took over the charge. Since April i found that the milk distributed by the kendra is very colder which created a doubt in my mind. On asking the distributing person told me that the milking has been done since 4 am you came around 5:30 am, so by the time it becomes colder. But i could not digest the reason because the milk was too cool as if from refrigerator.
Due to doubt of mixing in milk, one day when i reach there at about 4:25 am i saw them mixing huge amount of milk which is cold in temperature in the main drum from where they are generally distributing milk. i asked the man distributing about the content mixed, he told me that he mixed milk which was taken out from cows in the morning. Then I asked why the temp is so cold. This time he gave another reply that they start milking very early, so they put the milk taken out early morning in the refrigerator so that earlier taken out milk does get spoil till the time of distribution. I took the milk but my doubt still not clear because why there is any need to put the milk in refriegerator when it is taken out from 4 am plus how it became so cold within 10 to 15 min. Why the taste and smell of the milk changes during summer. These days it is a regular problem, whenever somebody points out, the distributing man usually says ‘why don’t you bought a cow so that you can get warmer milk’. But there are still some persons/ VIPs to whom the distributing person giving milk directly from bucket which also makes us loose trust in the Gaushalla milk distribution system.
Sir, my mother is in last stages of Alzheimer disease she has to be taken care of 24 hours just like 6 month old baby. Ayurvedic doctor has told me that since my mother cannot take oral Ayurvedic medicine so he is insisting that we should feed her with pure Indian cow milk which is rich in many antibodies.
Sir, since you are founder of that Gaushala and they will listen to you, my request to you is to stream line the distribution system of that Gaushala so that we could get pure healthy milk of Desi Cow and if they are mixing something than let us know what they are mixing and why, so that, trust appear in the distribution system. Further, if the milk is less than they can reduce the quantities but they should distribute that milk which is pure, so that if any body taking milk as medicine may get the desire benefit and does not feel like cheated. Further earlier Card system was better because it will not allow a new person to take milk without permission of distributing authorities and gap takers/ increasing quantity takers can also be tapped. Further, no body should be give either directly from bucket or other drum in which milkman are puring milk despite having space in main drum on the instructions of distributing man.
I end up with saying that we as society be always be debtor and grateful for your contribution in this field.
With lots of regards

Rajeev Kakkar