1.
गौ और
पर्यावरण
लगातार
पर्यावण की क्षति से होने वाले तापमान के बढ़ने से उत्पन्न परिस्थितियों जो इस
पृथ्वी पर ध्रुवी क्षेत्रों के हिम खंड पिघल जाने पर समुद्र जल का स्तर बढ़ने के
कारण आवासीय क्षेत्रों की भूमि
लगातार जल मग्न हो कर कम होती
जा रही है |
भारत वर्ष का 6100 किलोमीटर
लम्बा समुद्र तट है | बड़े नगर मुम्बइ और चेन्नइ अधिक जनसंख्या वाले नगर बढ़ते तापमान
से विशेष रूप से प्रभावित होते हैं | NEERI के
अनुसंधान के अनुसार पर्यावरण की क्षति के प्रभाव से केवल मुम्बइ को 2050 तक 35 लाख करोड़ के आर्थिक नुकसान का
अनुमान है | तापमान
1.62 डिग्री बढ़ा है और समुद्र का जल स्तर प्रति वर्ष 2.4 मिलीमीटर बढ़ा है |
1.
1. जिस के
फलस्वरूप प्राकृतिक आपदाएं जैसे cloud burst से
अचानक अत्यधिक वर्षा से आवागमन के साधन जन जीवन अस्त व्यस्त,
महामारियों के रोग ,
मकानों का गिरना होता जाता है |
जो किसी भी सरकार के बस का नहीं है |
2.
बढ़ते तापमान और हुमस (ह्युमिडिटी)
श्वास के संक्रामक रोग एलर्जी , भिन्न भिन्न प्रकार के फ्लू, एस्थमा ,फेफड़ों के रोग,मलेरिया ,दूषित जल के कारण के
आंत्रशोध, डायरिआ,
हेपेटाइटिस जैसे असाध्यरोग आज भी बढ़ते दिखाइ दे रहे हैं , वे और भयानक रूप
ले लेंगे | बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण कर्मचारियों की
अनुपस्थिति से देश के उत्पादन की ही नहीं
व्यक्तिगत आमदनी की भी हानि होगी | बीमारियों के बढ़ते खर्च, चिकित्सालयों की
लगातार कमी खान पान की सब वस्तुओं की बढ़ती
कीमतों पर जनता के असंतोष और कठिनाइ के लिए कोई भी उपाय कर पाने में सब सरकारें
अपने को असमर्थ पा रही हैं |
मीडिया विशेषज्ञ
इन सब के लिए राजनीति की शतरंग खेल रहे
हैं | उन सब के लिए मोदी जी की
सरकार ज़िम्मेवार है | असली बात पर्यावरण संरक्षण की बात
और हम सब का दायित्व क्या है यह कोइ क्यों
नहीं करता ? हुगली नदी और गङ्गा के डेल्टा पर बसे कलकत्ता नगर की तो पर्यावरण की दृष्टि
से अत्यंत गम्भीर परिस्थिति है | क्योंकि यह नगर समुद्र तट से केवल 1 मीटर ऊपर है | बहुत सा नगर तो कछार की भराइ से बना है (साल्ट लेक सिटी )| सर्दियों और वर्षा ऋतु में अब कोलकता में तापमान अधिक होता है | समुद्र के जल स्तर के बढ़ने से
, भूमि स्खलन से समुद्र का नम्कीन जल 100 किलोमीटरतक के
तटीयप्रदेश के जल को प्रभावित करता है | स्वच्छ पेय जल की
समस्या गम्भीर रूप धारण कर रही है |
2. पृथ्वी पर तापमान बढ़ने से कृषि
द्वारा खाद्य उत्पादन कठिन हो जाने
पर मानव जीवन के खाद्य सुरक्षा भी कठिन हो
जाएगी |
तब
वैज्ञानिक दृष्टि से प्रथम तो मांसाहार पर सम्पूर्ण रोक लगानी पड़ेगी |
कोइ भी खाद्य पदार्थ बिना जल और ऊर्जा के उत्पन्न और ग्रहण नहीं किया
जा सकता | सब
खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में
परोक्ष रूप में जितना जल लगता है उस का वैज्ञानिक दृष्टि से अनुमान
लगाया जाता है , वह उस खाद्यपदार्थ की उपलभ्ध्ता
का पद्चिह्न (Footprint) कहलाता है | अमेरिका के एक विश्लेषण के आधार पर निम्न
तालिका प्रस्तुत है | इस से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि
भविष्य में पृथ्वी पर मनुष्य की खाद्य सुरक्षा खाद्य को ध्यान में रखते हुए
शाकाहार को प्रोत्साहन देना होगा |
इसी
वैज्ञानिक दृष्टि से प्राचीन भारत में मांसाहार वर्जनीय और गोमांस निषेध था |
निम्न
तालिका से यह स्पष्ट है की भारतवर्ष में कि मांसाहार विशेष तौर पर गोमांस पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पूर्ण प्रतिबंध होना
चाहिए |
Water & Energy Footprints of Food items
as per American Study
खाद्य पदार्थ
उपलबधता में परोक्ष जल और ऊर्जा की आवश्यकता
Sl.No.
क्रमांक
|
1
Kg Food Item
1
किलो खाद्य पदार्थ
|
Liters
Water required
जल
की आवश्यकता
लीटर
में
|
KWhEnergy Required
ऊर्जा
की आवश्यकता
किलोवाट
घंटों में
|
11
|
Lettuce
लेटस सलाद
|
130 L
|
Nil
|
2 2
|
Potatoes आलू
|
250 L
|
Nil
|
3 3
|
Apples सेब
|
700 L
|
3.7KWh
|
4 4
|
Corn
Maize मक्का भुट्टा
|
900 L
|
0.95 KWh
|
5
5 5
|
Milk
दूध
|
1,100 L
|
1.6 KWh
|
66
|
Ground
Nuts मूंगफली
|
3,100 L
|
Nil
|
7 7
|
Eggs अण्डे
|
3,300 L
|
8.8
KWh
|
8 8
|
Chicken मुर्गी
|
3,900 L
|
9.7
KWh
|
9 9
|
Pork सूअर का
मांस
|
4,800 L
|
28
KWh
|
110
|
Cheese
चीज़
|
5,000 L
|
15 KWh
|
111
|
Olive
Oil ओलिव आयल
|
14,500 L
|
Nil
|
1
112
|
Beef maans गोमांस
|
15,500 L
|
69
KWh
|
पर्यावरण
सुरक्षा में गौ माता का वैज्ञानिक महत्व
Allan
Savory work
दक्षिणी
रोडेसिआ में गत 1960 में वन और पर्यावरण में कार्य कर रहे वैज्ञानिकों ने जब विश्व के बदलते पर्यावरण के
कारण वहां के हरे भरे वनीय क्षेत्र की हरयाली समाप्त होते देखी तो सब का यह विचार था कि शाकाहारी पशु हाथी, गौ इत्यादि वनों की हरियाली खा कर समाप्त कर देते हैं | उस वन में हाथी बड़ी संख्या में थे | निर्णय हुआ कि
सब हाथियों का वध कर दिया जाए | इस अभियान में उस दशक में 40,000 से अधिक हाथी मारे
गए जो आर्थिक व्यापार की दृष्टि से भी बड़ा
लाभदायक रहा | परंतु हाथियों के मारे जाने के बाद बड़ा
आश्चर्य हुआ कि जो रही सही हरियाली बची थी वह भी समाप्त हो गई |
दोबारा अनुसंधान के लिए हाथी तो अब समाप्त हो
चले थे , शाकाहारी बड़े पशुओं से अनुसंधान
करने के लिए केवल गौओं पर ध्यान गया | कुछ क्षेत्र चुने गए
और वहां गौओं के बड़े समूह रखने की योजना बनी | बड़ा अश्चर्य
हुआ जब यह देखा कि जिस भूमि पर गौओं का
गोबर गोमूत्र भूमि पर उन के पैरों से खूब मिला हुआ था वहां जब अगली बार वर्षा हुई तो वर्षा का
पानी बह कर आगे नहीं गया और वहीं भूमि में
सोख लिया गया | भूमि की आर्द्रता बढ़ जाने से हरियाली
पुन:उत्पन्न होने लगी | अनुसंधान से यह पाया गया कि जिस भूमि
में 1 किलो गौ का गोबर मिला होता है वह 9 गुणा यानि 9 किलो पानी सोख
कर रखती है | इस प्रकार उजड़े जंगलों में गौ के समूह पालन करने से उन्हें पुन: हरा भरा
बनाया जा सका |
एलेन सेवरी नाम के पर्यावरण वैज्ञानिक इस
निष्कर्ष पर पहुंचे , कि गौओं के
बड़े बड़े समूह बना कर योजना बद्ध तरीके से पृथ्वी पर छोड़ कर आधुनिक काल में पर्यावरण सुधार के लिए प्रागितिहासिक काल (Prehistoric times ) जैसी
व्यवस्था की कृत्रिम रूप से नकल की जानी
चाहिए | गौएं ही
बड़े स्तर पर पर्यावरण सुरक्षा का सब से सरल उपाय है |
जितनी
अधिक गौएं भूमि पर घूम कर चरते हुए गोबर छोड़ेंगी उतनी ही भूमि की वर्षा के
जल को समाहित करने की क्षमता बढ़ती है,
भूमि में कार्बन डाइओक्साइड गैस को समाहित करनेकी क्षमता बढ़ती है जिस के परिणाम
स्वरूप ओज़ोन आच्छादन सुरक्षित होता है | इस प्रकार गौओं की संख्या बढ़ा कर गोचरों में
छोड़ने के साथ अन्य गैर पारम्परिक ऊर्जा के
सौर ऊर्जा जैसे स्रोतों के उपयोग से विश्व में पर्यावर्ण की पूर्ण रूप से सुरक्षा
सम्भव हो सकेगी | भारत वर्ष की गो रक्षा और सौर ऊर्जा के
आधार पर्यावरण नीति पर विश्व की सब से उन्नत पर्यावर्ण सुरक्षा नीति सिद्ध होने जा
रही है | इस प्रकार पर्यावरण में बदलाव के कारण से विश्व के
तापमान में जो बराबर वृद्धि हो रही है
रोकी जा सकेगी |
भारत वर्ष में विश्व के देशों में सब से अधिक कृषि योग्य भूमि बताइ जाती है
| जिस में से लगभग आधी ऊसर पड़ी है |
समस्त ऊसर भूमि को गौओं द्वारा कृषि योग्य बनाने का साधन जैसा आधुनिक वैज्ञानिक
एलेन सेवरी बता रहे हैं वही ऋग्वेद 6.47.
20 से 23 में भी दिया गया है |
गौओं की सुव्यवस्था से गोचर स्वयं से हरे भरे रहते हैं | गोचर में पोषित गौओं के दूध में औषधिक गुण आ जाते हैं , साथ में गौ के गोचर मे पोषण से गौ के आहार पर व्यय लगभग शून्य होने से
दूध लगभग मुफ्त पड़ता है |
इस प्रकार गौ का गोचर से सम्बंध पर्यावरण
और स्वास्थ्य कि दृष्टि से अमूल्य होता है
|
देश में जितनी गौएं अधिक होंगी और गोचरों में आहार ग्रहण करेंगी उतना ही अधिक
गोबर से जैविक कृषि हो सकेगी |
कृषि की
भूमि की आर्द्रता बढ़ी रहने से सिंचाइ के लिए पानी और सिंचाइके पानी के
लिए बिजली की भी आवश्यकता बहुत कम हो जाती
है |
इसी
लिए गौ के इतने बड़े महत्व के कारण भारतीय संस्कृति में गौ को अघ्न्या कह कर गो वध
के दोषी को मृत्यु दण्ड का प्रावधान दिया गया है |
पाश्चात्य विद्या से प्रभावित भारतीय समाज और
प्रसार माध्यम , गौ के इस महत्व के
वैज्ञानिक महत्व के बारे में कुछ जानने के
बाद भी केवल राजनैतिक लाभ के लिए गौ रक्षा को हिंदुओं द्वारा
अल्पसंख्यक समुदायों पर अपनी मनमानी थोंपने का आरोप लगा रहे हैं |