गाय के दूध मे वसा पर विज्ञान
Subodh Kumar ( Email-subodh1934@gmail.com)
1. Fats in Cow's Milk
विश्व में वैज्ञानिक आधार पर अब यह सिद्ध हो चुका है कि हरे चारे पर गोचरों मे स्वपोषित गाय का दूध सब रोगों के लिए ओषधि का काम करता है. आयुर्वेद के अनुसार भी यही सत्य भी है.
भारतीय पम्परा मे वेदों मे गौपालन मे स्वच्छ वातावरण , स्वच्छ पेय जल और स्वच्छ हरे चरे पर गाय के पोषण के बारे मे विस्तृत उपदेश मिलता है.
पाश्चात्य देशों में साधारण लौकिक ज्ञान के अनुसार दूध मे पाए जाने वाले सभी वसा तत्व वांछनीय माने जाते थे. इसी ज्ञान से प्रेरित हो कर विश्व डेरी उद्योग की नीतियो का सम्पादन हुवा. डेरी विशेषज्ञो की सलह पर भारत वर्ष मे भी दूध के दाम वसा के अनुपात के आधार पर व्यापारिक लाभ को ध्यान मे रख कर निर्धारित करे गये.
गाय का दूध अमृत कब था
परन्तु जब भारतीय परम्परा मे गाय के दूध को जब अमृत बताया गया था उस समय आजकल जैसी गाय को खुन्टे पर बांध कर खल बिनोला दाना खिलाने की डेरी उद्योग जैसी व्यवस्था नही होती थी. न ही रसायनिक उर्वरकों , विषैले कीटनाशकों से प्रभावित अस्वच्छ पेय जल और आहर से प्रभावित वातावरण में गोपालन होता था. (इन्ही बातों को ध्यान में रख कर आज जैविक कृषि का पुनरुत्थान किया जा रहा है.)
दूध मे वसा का विषय
वैदिक काल मे गाय को दो प्रजातियों मे देखा जाता था. एक वे गाय जिन के दूध मे कम वसा होती थी और दूसरे वे गाय जिन के दूध मे वसा का अनुपात अधिक होता था. अधिक वसा वाले दूध को आहार मे प्रयोग करने मे सावधानी बरतने को कहा जाता था.
वसा का मुख्य प्रयोजन तो यज्ञ मे हवि बताया जाता था . आहार मे अलग से वसा का सेवन अच्छा नही माना जाता था.
यह दृष्टिकोण पूरी तरह से आधुनिक आयुर्विज्ञान से मेल खाता है.
प्राचीन भारत वर्ष के पाणिनी कालीन विवरण से ज्ञात होता है कि उस समय मे साधारण गाय के दूध मे 1% से कम वसा होनी बताई जाती है.
इस पर ऋग्वेद के मंत्र “ तयोरिद् घृतवत् पयो विप्रा रिहन्ति धीतिभि: ! गन्धर्वस्य ध्रुवे पदे!! ऋ1/22/14” से भी यही उपदेश मिलता है कि घृत और गोदुग्ध के घृत को बुद्धिमान बहुत सोच समझ के सेवन मे लाते हैं, यह जानकारी गन्धर्वों (विद्वत जनों) में सब को थी.
कौटिल्य के अर्थ शास्त्र के अनुसार गौ के दुग्ध मे 0.596% वसा प्रामाणिक थी.
क्षीर द्रोणे गवां घृतप्रस्थ: | पञ्च्भागाधिको महिषीणाम्| द्विभागाधिकोSजावीनाम् मन्थो वा सर्वेषां प्रमाणं,भूमितृणोदकविशेषाद्धि क्षीघृतवृद्धिर्भवति| कौटिल्यर्थ शास्त्र 45.29
One Dron of Cow milk provides one Prasth of butter, Buffalo milk has 5times higher, and goat milk has two times higher fat. These are the results obtained after churning of the milk curds. Butter/Fat content depends upon Soil, Green fodder and Water quality and availability .
(One Dron =12.788 Kg, one Prasth=768 grams.) Thus fat content of Cow milk in Kautilyas time is specified as 0.596%
डेरी दूध मे वसा
वेदों मे गाय को द्युभक्ता कहा गया है. गाय अपने स्वभाव से घुमक्कड होती है.डेरी उद्योग मे गाय को बांध कर रखने की व्यवस्था से श्रमविहीन गाय के दूध मे वही अवगुण उत्पन्न हो जाते हैं जैसे श्रमविहीन जीवन शैली से रहने वाले मनुष्यों मे रोग आ जाते हैं.
वैज्ञानिक अनुसन्धान से यह पाया गया है कि गाय के दूध मे दो मुख्य श्रेणी के वसा होते हैं. असंतृप्त और संतृप्त Unsaturated and Saturated . मानव स्वास्थ्य के लिए असंतृप्त वसा का महत्व आधुनिक विज्ञान के सामने 1982 मे नोबल पुरुस्कार के बाद आया है.
1990 के दशक तक तो असंतृप्त वसा अम्ल Unsaturated fatty acids का प्रभाव केवल शारीरिक स्वास्थ्य ही समझा जाता था. 2000 के दशक से ओमेगा3 का प्रभाव मनुष्य के मस्तिष्क की चेतना शक्ति, मानसिक तनाव इत्यादि से भी समझा जाने लगा है.
आज मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए असंतृप्त वसा का आहार मे इतना मह्त्व माना जा रहा है कि ओमेगा3 की केप्स्यूल दवा के रूप मे सब रोगों के लिए रामबाण बता कर अरबों का व्यापार किया जा रहा है. यह सब समाज मे जन साधारण को अज्ञान के अंधकार मे रख कर ही किया जा पा रहा है.
वास्तव मे सारा सत्य तो गोमाता के अमृत तुल्य दूध ही मे छुपा है.
आधुनिक वैज्ञानिक अनुसन्धान के अनुसार जिसा ओमेगा 3 को इतना मह्त्वपूर्ण बताया जा रहा है वह संसार मे केवल हरे चारे पर पोषित गाय के दूध या ठण्डे जल की मछ्लियो मे ही पाया जाता है.खल बिनोला दाना इत्यादि खिलाने से जो दूध मे वसा तत्व बढता है वह संतृप्त Saturated fatतत्व बढता है जो मनव शरीर मे उच्च रक्त चाप इत्यादि से हृदय रोग बढाता है. दूध के वसा मे असंतृप्त वसा EFA Essential Fatty Acids Omega3 ,Omega6 ओमेगा3 और ओमेगा6 कुल वसा का 25% से 30% तक ही होते हैं. इन को ईएफए इसेंशल फेटी एसिड आवश्यक वसा कहा जाता है, क्योंकि यही वह वसा तत्व हैं जो मानव शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक और महत्व्पूर्ण हैं.
हम ने भारत सरकार से अनुरोध किया है कि यदि दूध मे वसा के आधार पर दाम निर्धारित किये जाते हैं तो कुल वसा के आधार पर नही, असंतृप्त वसा के आधार पर किये जाने चाहियें. कुल वसा के आधार पर तो समाज मे हृदय रोग बढाने वाले दूध का प्रसार हो रहा है. गाय को जितना अधिक हरा चारा मिलेगा उस के दूध मे उतने ही गुणकारी असंतृप्त वसा EFA की मात्रा अधिक होगी समाज उतना ही स्वस्थ और निरोग होगा.
सारा डेरी दूध केवल अधिक वसा की मात्रा के आधार पर दूध को बेच कर समाज मे भैंस के दूध को बढावा दे कर समाज के स्वास्थ्य विषय की अनदेखी और अहित कर के गाय के साथ अन्याय भी कर रहा है. कृत्रिम दूध, होमोजेनाइज़ेशन, पास्च्युरैज़ेशन अलग अपने मे हानिकारक मुद्दे हैं.
आज योरपीय संघ का डेरी उद्योग इस विषय पर लिपजीन ‘Lipgene’ अनुसंधान अभियान से यह पता लगाने पर कि गाय के दूध मे प्राकृतिक रूप से कैसे अच्छे वसा की मात्रा बढाई जा सकती है, योरप की 21 अनुसंधान शालाओं मे एक ही विषय पर खोज कर रहा है. हमारी भरतीय परम्परा मे तो जैसा ऊपर लिखा है पाणिनी काल मे हमारी गाय के दूध मे प्रकृतिक रूप से केवल अच्छे वसा ही पाए जाते थे.
2007 में न्यूज़ीलेंड में मर्ज नाम की एक गौ के दुग्ध में 1% से कम वसा प्राप्त हो गया है. उस प्रजाति को बढ़ा कर एक उत्तम दुग्ध की आधिनिक गौ के व्यापारी करण की ओर आदुनिक डेर्ई उद्योग प्रयास रत है.
ग़ोदुग्ध के मह्त्वपूर्ण वसा तत्व
आधुनिक विज्ञान यह भी बताता है कि आहार मे ओमेगा3 से डी एच ए DHA ( Decosa hexaenoic acid) तत्व बनता है इसी तत्व से मानव मस्तिष्क और नेत्र शक्ति बनते हैं. ई एफ ए मे दो तत्व ओमेग3 और ओमेगा 6 बताए जाते हैं दोनो तत्व जब संतुलित अनुपात मे पोषण द्वारा प्राप्त होते हैं तभी मानव मस्तिष्क कुशाग्र और संतुलित होता है.
सम्पूर्ण विश्व मे आज भी भारतीयों की बुद्धिमत्ता का लोहा माना जता है.
क्या कभी पूजनीय रामदेव जी के प्रवचन सुनते हुए यह ध्यान मे आता है कि स्वामी जी कितनी सरलता से अभूत पूर्व विलक्षण कुशाग्र बुद्धि, विस्मयकारी स्मरणशक्ति द्वारा हिंदी, संस्कृत और अंग्रेज़ी मे वेदो.शास्त्रों, आयुर्वेद और आधुनिक पाश्चात्य आयुर्विज्ञान के सिद्धांतो से उद्धरित उपदेश देते हैं ? यह उसी प्रचीन वैदिक परम्परा का द्योतक है जिस के चलते सम्पूर्ण वेदो को कण्ठस्थ कर के भारतीय ज्ञान सम्पदा को सुरक्षित रखा जाता था. था.आज भी ऐसे साधारण ग्रामीण जनमानस से सम्पर्क होता है जिन्हे सम्पूर्ण रामचरित मानस पर इतना अधिकार है लि तुलसी की कोइ भी चोपाइ कभी भी सहज मे कह देते हैं.आज भी कितने ही विद्वान मिलते हैं जिन का वैदिक वाङ्मय, गीता, उपनिषद इत्यादि पर इतना अधिकार है कि कहीं पर भी संस्कृत उक्तियो का उद्धरण यथा स्थान प्रस्तुत कर देते हैं.
हम इस विलक्षण भारतीय मस्तिष्क सामर्थ्य शक्ति को कभी ध्यान नही देते. अंग्रेज़ी मे कहा जाता है कि ‘वी टेक इट फोर ग्रांटेड’
ऐसी कुशाग्र बुद्धि का परिचय साधारण जनमानस मे विश्व की किसी भी सभ्यता मे नही मिलता है. यह एक शोध का विषय है कि यह विस्मय कारी अनुभव भारत वर्ष ही मे क्यों देखने को मिलता है. यह सहस्रो वर्षों से गोमाता के अमृत तुल्य दूध पर पोषित भरतीय मस्तिष्क के लिए उपलब्ध ओमेग3 का ही प्रसाद है.
आधुनिक विज्ञान यह भी बताता है कि मानव मस्तिष्क का 70% भाग फास्फोरस युक्त वसा तत्व जिन्हे विज्ञान की भाषा मे डीएचए ओर ईपीए DHA ( Docoso Hexa enoic Acid) & EPA ( Ecosa pentaenoic acid) कहा जाता है.
आधुनिक विज्ञान के अनुसार ये डीएचए और ईपीए आहार से प्राप्त ओमेगा 3 से बनते हैं. यही तो वह वसा तत्व है जो गाय के दूध को अमृत तुल्य बनाते है. यहां यह भी बताने मे संकोच नही करना चाहिये कि यद्यपि पाश्चात्य आयुर्विज्ञान ब्रह्मचर्य का अभी तक कोई महत्व नही मानता परन्तु यह भी सब वैज्ञानिक जानते हैं कि मानव वीर्य भी उन्ही दो तत्वों से बना होता है जिन से मानव मस्तिष्क .
योग शिक्षा मे ऊर्ध्वरेता का यही महत्व है कि मानव रेतस मस्तिष्क की ओर ऊपर को प्रेरित होना चहिये. यही भत्सरिका, बाह्य , कपालभाती अनुलोम विलोम के प्राणयाम द्वारा ऊर्ध्व्रेता बन कर मानव हित का विषय है.
यही उपदेश प्रसिद्ध वेद मंत्र तच्च्क्षुर्देवहितं शुक्रमुच्चरत् जिस मे सौ वर्ष तक मानव शरीर की सब इंद्रियों को स्वस्थ होने की प्रार्थना है उस मे वेद का उपदेश है शुक्रमुच्चरत् शुक्र को ऊर्ध्वरेता बन कर मस्तिष्क मे धारण करने से ही हमारी सब इंद्रियां आजीवन स्वस्थ रह्ती हैं. यही वह भारतीय ज्ञान है जहां अभी पाश्चत्य आयुर्विज्ञान को पहुंचना है.
प्रोढों को स्मरण शक्ति बढाने के लिए पाश्चात्य आयुर्विज्ञान Phosphatidylserine ओषधि का प्रयोग करते हैं. इस दवा को बूचडखानों से गाय के मस्तिष्क से निकाला जाता है.
यहां यह भी समझ मे आना चाहिए कि सारा विश्व गोहत्या बंद करने के लिए क्यो तैयार नही होता. क्रितृम विटामिन डी और उपरुल्लिखित ओषधि जैसी कितनी ही अत्यधिक आर्थिक महत्व की वस्तुएं बूचड्खानो से उपलब्ध होती हैं. यही नही सारा विश्व का वेक्सीन अनुसंधान भी गौ माता के ही शरीर से प्राप्त अवयवों पर निर्भर रहता है.
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